अगर
भूल जाऊँ कविता लिखना तो
शीत की तरह
उभर आएँगे
स्मृति पटल पर
तमाम दुःख
शोक और
मानवीय संवेदनाओं के
मिले-जुले भाव
और
तब
हवा के थपेड़ों से पिटती हुई
अनिश्चित गंतव्य की ओरचलती हुई नाव
और
उसमें प्रथम बार यात्रा कर रहे
सहमे हुए यात्री की आँखों से
निकल आएँगे अश्रु
और
पेट में उठेगा
ज्वार-भाटे सा दर्द
माथे पर होंगे
तपते हुए मिश्रित भाव
तब
शर्म से
समा जाएगी धरती
आकाश में या
पुनः स्मरण हो आएगी
कवि को कविता।
भूल जाऊँ कविता लिखना तो
शीत की तरह
उभर आएँगे
स्मृति पटल पर
तमाम दुःख
शोक और
मानवीय संवेदनाओं के
मिले-जुले भाव
और
तब
हवा के थपेड़ों से पिटती हुई
अनिश्चित गंतव्य की ओरचलती हुई नाव
और
उसमें प्रथम बार यात्रा कर रहे
सहमे हुए यात्री की आँखों से
निकल आएँगे अश्रु
और
पेट में उठेगा
ज्वार-भाटे सा दर्द
माथे पर होंगे
तपते हुए मिश्रित भाव
तब
शर्म से
समा जाएगी धरती
आकाश में या
पुनः स्मरण हो आएगी
कवि को कविता।
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