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बुधवार, 22 जून 2011

आत्महत्या का अधिकार-

ना चहिये मुझे सूचना का अधिकार,
ना ही चहिये मुझे शिक्षा का अधिकार
गर कर सकते हो मुझ पर कोई उपकार
तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

क्या करूँगा मैं अपने बच्चों को स्कूलों में भेजकर
जबकि मैं खाना भी नही खिला सकता उन्हें पेटभर
भूखा बचपन सारी रात, चाँद को है निहारता 
पढ़ेगा वो क्या खाक, जिसे भूखा पेट ही है मारता

और अगर वो लिख-पढ़ भी लिए ,तो क्या मिल पायेगा उन्हें रोजगार
नही थाम सकते ये बेरोजगारी तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

मेरे लिए, सैकड़ो योजनाये चली हुई है, सरकार की
सस्ता राशन, पक्का मकान, सौ दिन के रोजगार की
पर क्या वास्तव में मिलता है मुझे इन सब का लाभ
या यूँ ही कर देते हो तुम, करोड़ो-अरबो रुपये ख़राब

अगर राजशाही से नौकरशाही तक, नही रोक सकते हो यह भ्रष्टाचार,
तो उठाओ कलम, लिखो कानून, और दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

कभी मौसम की मार, तो कभी बीमारी से मरता हूँ
कभी साहूकार, लेनदार का क़र्ज़ चुकाने से डरता हूँ
दावा करते हो तुम कि सरकार हम गरीबों के साथ है
अरे सच तो ये है, हमारी दुर्दशा में तुम्हारा ही हाथ है 

मत झुठलाओ इस बात से, ना ही करो इस सच से इंकार 
नहीं लड़ सकता और जिन्दगी से, दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

मैं अकेला नही हूँ, जो मांगता हूँ ये अधिकार,
साथ है मेरे, गरीब मजदूर, किसान और दस्तकार
और वो, जो हमारे खिलाफ आवाज उठाते है
खात्मा करने को हमारा, कोशिशें लाख लगाते है

पूर्व से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, मचा है हाहाकार
खत्म कर दो किस्सा हमारा, दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

क्यों कर रहे हो इतना सोच विचार
जब चारो और है बस यही गुहार
खुद होंगे अपनी मौत के जिम्मेदार
अब तो दे ही दो, आत्महत्या का अधिकार.
- विभोर गुप्ता (9319308534)

बुधवार, 15 जून 2011

क्या लिखूं कैसे लिखूं ...कविता ...डा श्याम गुप्त....


क्या लिखूं कैसे लिखूं
अब कुछ लिखा जाता नहीं |
बेखुदी में हम हैं डूबे,
कुछ ख्याल  आता नहीं ||

उनके ख्यालों की अतल-
गहराइयों में डूब कर |
होश खो बैठे हैं हम,
अब होश से नाता नहीं ||

उनका उठना, बैठना-
चलना, मचलना, उलझना,
बेरुखी  और वो रूखे -
अंदाज़ से लट झटकना;
और लिपट रहना ,
मेरी  यादों से अब जाता नहीं ||

अब  तो बस उस शोख के ,
दीदार का है इंतज़ार |
उनकी इस तस्वीर से ,
अब दिल बहल पाता नहीं ||
    

रविवार, 12 जून 2011

तानाशाही सत्ता की जय हो

अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
भ्रष्टाचार और कालेधन पर अपना मुंह नही खोलूँगा

अरे, मुझको भी तो अपनी जान बहुत प्यारी है
सच लिखने की ताकत मेरी, सत्ता के आगे हारी है
तो भला मैं, क्यूँ सच बोल कर अपना शीष कटाऊ
अमानवीय सरकार को भला क्यूँ अपना दुश्मन बनाऊ

जो सत्ता सोये हुए लोगो पर लाठी बरसा सकती है
न्याय की प्यासी जनता को बूँद-बूँद तरसा सकती है
जिसने सत्याग्रह का अर्थ ही कभी ना जाना हो
लोकतंत्र में जनता की पुकार को कभी ना माना हो

जिसे दुनिया ने पूजा सदा, वो उसको ठग बतलाती है
आधी रात को लाठिया बरसा मन ही मन मुस्काती है
वो सत्ता भला कलम की ताकत को क्या जानेगी
भ्रष्टाचार से पीड़ित प्रजा के आंसू क्या पहचानेगी

सत्ता के धर्म-अधर्म को अपनी कलम से नही तोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा

आज चली है लाठिया, कल गोली भी चलवा सकते है
सच लिखने के अपराध में मुझे भी अन्दर करवा सकते है
तानाशाह हो चुकी सरकार अब प्रजातंत्र को भूल रही
भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार, सत्ता के मद में झूल रही

सिंहासन का राजा कोई, बागडोर किसी और के हाथ में
खरगोशों का शिकार कर रहे, सिंह-सियार दोनों साथ में
कसाब खा रहा बिरयानी, सत्याग्राही लाठिया है खा रहे
देश में आतंक फ़ैलाने वाले, लादेन जैसे सत्ता को भा रहे

सात समंदर पार, सत्ता के दलालों की भर रही है तिजोरिया
और एक योगगुरु को द्रोही बतलाकर कर रहे वो मुंहजोरिया
अब तो लगता है डर, कहीं ना कर दे मुझको भी बदनाम
मैं क्यूँ पडू इस झंझट में, करूँगा मैं सत्ता को सलाम

सिंहासन के फेंके सिक्कों पर, अब तो मैं भी डोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा

अपनी जेब भरने को, मैं दरबारों की जेबे टटोलूँगा
अपनी कडवा सच की कविताओं में झूठ की मिश्री घोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
भ्रष्टाचार और कालेधन पर अपना मुंह नही खोलूँगा

-विभोर गुप्ता (9319308534)