गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे।
हर गीत निखर जाये मेरा, तुम आओ जब मेरे द्वारे॥
मैं पलक पावणे बैठा था,
मेरा अपना भी कोई आयेगा।
ऐसा ही मैं भी गीत कोई लिखूँ,
पत्थर मूरत हो जायेगा॥
यह गीत सिंधु सा हो जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
तू तुलसी की रामायण,
मैं प्रेमचंद की रंगशाला।
तू गालिब की गजल बनें,
बच्चन की मैं भी मधुशाला॥
गीतों को सरगम मिल जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
तुम वृहद कोष हो शब्दों का,
मैं एक शब्द में हो गया।
अब तन मेरा मथुरा का यौवन,
मन वृन्दावन हो गया॥
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
तू तुलसी की रामायण,
मैं प्रेमचंद की रंगशाला।
तू गालिब की गजल बनें,
बच्चन की मैं भी मधुशाला॥
गीतों को सरगम मिल जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
तुम वृहद कोष हो शब्दों का,
मैं एक शब्द में हो गया।
अब तन मेरा मथुरा का यौवन,
मन वृन्दावन हो गया॥
हर गीत ही गीता हो जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
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