ना चहिये मुझे सूचना का अधिकार,
ना ही चहिये मुझे शिक्षा का अधिकार
गर कर सकते हो मुझ पर कोई उपकार
तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार
क्या करूँगा मैं अपने बच्चों को स्कूलों में भेजकर
जबकि मैं खाना भी नही खिला सकता उन्हें पेटभर
भूखा बचपन सारी रात, चाँद को है निहारता
पढ़ेगा वो क्या खाक, जिसे भूखा पेट ही है मारता
और अगर वो लिख-पढ़ भी लिए ,तो क्या मिल पायेगा उन्हें रोजगार
नही थाम सकते ये बेरोजगारी तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार
मेरे लिए, सैकड़ो योजनाये चली हुई है, सरकार की
सस्ता राशन, पक्का मकान, सौ दिन के रोजगार की
पर क्या वास्तव में मिलता है मुझे इन सब का लाभ
या यूँ ही कर देते हो तुम, करोड़ो-अरबो रुपये ख़राब
अगर राजशाही से नौकरशाही तक, नही रोक सकते हो यह भ्रष्टाचार,
तो उठाओ कलम, लिखो कानून, और दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.
कभी मौसम की मार, तो कभी बीमारी से मरता हूँ
कभी साहूकार, लेनदार का क़र्ज़ चुकाने से डरता हूँ
दावा करते हो तुम कि सरकार हम गरीबों के साथ है
अरे सच तो ये है, हमारी दुर्दशा में तुम्हारा ही हाथ है
मत झुठलाओ इस बात से, ना ही करो इस सच से इंकार
नहीं लड़ सकता और जिन्दगी से, दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार
मैं अकेला नही हूँ, जो मांगता हूँ ये अधिकार,
साथ है मेरे, गरीब मजदूर, किसान और दस्तकार
और वो, जो हमारे खिलाफ आवाज उठाते है
खात्मा करने को हमारा, कोशिशें लाख लगाते है
पूर्व से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, मचा है हाहाकार
खत्म कर दो किस्सा हमारा, दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार
क्यों कर रहे हो इतना सोच विचार
जब चारो और है बस यही गुहार
खुद होंगे अपनी मौत के जिम्मेदार
अब तो दे ही दो, आत्महत्या का अधिकार.
- विभोर गुप्ता (9319308534)
जो आपका नहीं है उसे नष्ट करने का आपको क्या अधिकार है....लड़ कर मरो...
जवाब देंहटाएंतबै तुमि एकला चलो रे...
वाह, बहुत बढिया..
जवाब देंहटाएंहर प्रस्तुति सुन्दर कही, श्रम को सराहा हृदय से,
जवाब देंहटाएंअब तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला ले चलो |
जब चारों और निराशा ही निराशा हो...आशा की कोई भी किरण दिखाई देने की संभावना न हो....तभी आत्महत्या के अधिकार की मांग सामने आती है!....सुन्दर प्रस्तुति!...धन्यवाद!
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