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मंगलवार, 27 मार्च 2012

सीमित दायरा

महीनों हो गए

पडो‌स का मकान खाली है

कोई

रह भी रहा हो तो

पता नहीं

बंद दरवाजे

कहाँ बताते हैं

बगल में कौन रहता है

वे तो मूक हैं

इस तरह

कंक्रीट वाले जंगलों के बीच

महानगरों में रहने वालों की जिंदगी

दस-बाई-दस के कमरों से लेकर

चार-बाई छः की

कार तक ही सीमित है

जो

भागती रहती है

कोलतार की गर्म सड‌कों पर

या

बीतती है बंद कमरों में

इनके

दिन की शुरूआत होती है

ताला बंद करने से

और

खत्म होती है

देर रात को

ताला खोलने तक

बंद दरवाजे के भीतर

दम-घोंटू वातावरण

ताला खोलते ही

भयानक अंदाज में अहसास कराता है

अपने आपको

कैद से मुक्त कराने का

और

करता है

जानलेवा प्रयास

ताकि

कल तुम ऐसा न करो

फिर भी नहीं मानते

महानगरों में बसने वाले लोग

क्योंकि

सीमित हो चुका है उनका दायरा

और

वे इस दिनचर्या रूपी

नशे के आदी हो चुके हैं।

4 टिप्‍पणियां:

  1. दाही दायम दायरा, दुःख दाई दनु दित्य ।
    कच्चा जाता है चबा , चार बार यह नित्य ।

    चार बार यह नित्य, रात में ताकत बढती ।
    तन्हाई निज- कृत्य, रोज सिर पर जा चढती ।

    इष्ट-मित्र घर दूर, महानगरों की *हाही ।
    कभी न होती पूर, दायरा **दायम दाही ।।
    *जरुरत **हमेशा

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति भी है,
    आज चर्चा मंच पर ||

    शुक्रवारीय चर्चा मंच ||

    charchamanch.blogspot.com

    Sir
    word varification tang kar raha hai |
    shaayad aap kahin nahin dekhte honge ise --
    isiliye kasht ka andaaja nahin hai aapko

    जवाब देंहटाएं
  3. बंद दरवाजे

    कहाँ बताते हैं

    बगल में कौन रहता है
    its true.

    जवाब देंहटाएं